छत्तीसगढ़राज्य

लगभग 65 साल पहले जमीन अधिग्रहित की गई, परंतु राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण नहीं हुआ दर्ज 

कोरबा, कोरबा अंचल की शासकीय, गैर शासकीय जमीनों की अफरा-तफरी प्रदेश में सदैव गहन चर्चा एवं चिंता का विषय बनी रही हैं। इसके नेपथ्य में जाने से एक यह बात भी उभरी हैं, की इसका एक कारण यह भी रहा हैं की राजस्व अमले ने यहां कभी भी चेतन्यता से जिम्मेदारी एवं जवाबदेही के साथ कार्य नहीं किया हैं। चौकाने वाली बात यह भी हैं की हसदेव बांगो बहुद्देशीय परियोजना की बायीं तट नहर कोरबा शहर का सीना चीर कर इसे दो भागो में विभक्त कर गुजरी हैं। विद्युत संयंत्रों, नहरों, सड़को, रेल लाइनों, शासकीय निर्माणों आदि की स्थापना के लिए शासकीय तोर पर विधिवत समस्त वैधानिक ओपचारीकताओ को पूर्ण करते हुए शासन के माध्यम से बाकायदा निजी भूमिस्वामीयो से जमीनों का मुआवजा राशि के भुगतान पश्चात अधिग्रहण तो किया गया किंतु अधिकांश जमीनों का विधिवत राजस्व अभिलेखों में नामांतरण दर्ज नहीं किया गया। समस्त ओपचारीकताओ के बाद माटीपुत्र भूमि स्वामियों को अर्जित की गयी भूमि, भूखंडो की मुवावजा राशि का भुगतान तात्कालीन अवधि अर्थात दो तीन दशकों पूर्व किये जाने के बावजूद अर्जित भूखंडो का नामांतरण नहीं किये जाने की दशा में अधिकांश भूस्वामियों का स्वामित्व शासकीय अभिलेखों में उनके नाम पर ही दर्ज रहा और एकाएक उमड़े जमीन दलालो की सक्रियता ने बेजा लाभ उठाते हुए उन जमीनों की खरीद-फरोख्त चालु कर दी। जिन जमीनों पर से बनकर गुजरी नहरों में बीस फुट ऊचाई तक का पानी अविरल बह रहा हैं और उनकी तलहटी के भूखंडो का खेल चालु हो गया। एक तरफ शासकीय अभिलेखों में प्राचीन मूल भू-स्वामी स्वामी बने रहे, वही दुसरी और नामांतरण के अभाव में शासकीय तोर पर अधिग्रहित इन जमीनों पर योजनाओ के निर्माण जारी रहे। यदि माकूल समय में अधिग्रहित जमीनों का स्वामित्व शासकीय अभिलेखों से विलोपित कर अर्जित संस्थानों का नाम दर्ज कर दिए जाते, तो यह संकट उत्पन्न नहीं होता। आज स्थिति यह हैं की जमीनों के स्थल, ग्राम, पटवारी हल्का नंबर, राजस्व निरक्षक के साथ-साथ अर्जित भूमियो के खसरा नंबर, रकबा सहित उपयुक्त स्वामित्व के कालम में दर्ज होते ही सारा घालमेल स्पष्ट हो जाएगा। क्योंकि धन लोलुपों ने स्वामित्व के दस्तावेजों के सहारे जहा भी सुविधाजनक भू-खंड मिला उसे अपने स्वामित्व का घोषित कर उस पर बड़े-बड़े निजी निर्माण कार्य प्रारंभ कर डाले। एक ही नंबर की जमीनो का लाभ दोहरे रूप में लिया जाने लगा।  
        जानकारी के अनुसार लगभग 65 साल पहले जमीन अधिग्रहित की गई, परंतु राजस्व अभिलेखों में नामांतरण दर्ज नहीं होने से यह समस्या उत्पन्न हो रही हैं। रेलवे ने रेलवे लाइन और सिंचाई विभाग ने नहर बनाने के लिए लगभग 65 साल पहले जमीन अधिग्रहित की थी। नहर के सेंटर से दोनों ओर 36-36 मीटर जमीन सिंचाई विभाग की बताई जा रही है। लेकिन राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में विभाग के नाम पर नामांतरण ही नहीं हुआ जिसके कारण कई लोगों ने अवैध रूप से जमीन की खरीद-फरोख्त कर संकट उत्पन्न कर दिया।

News Desk

The News Desk at Janmorcha.in is committed to delivering timely, accurate, and in-depth coverage of the latest events from across the globe. Our team of seasoned journalists and editors work tirelessly to ensure that our readers are informed with the most current and reliable news. Whether it's breaking news, politics, sports, or entertainment, the News Desk is dedicated to providing comprehensive analysis and insights that matter to our audience. Trust the News Desk at Janmorcha.in to keep you informed with the news that shapes the world around us.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button