संस्कृति - अयोध्या

महर्षि दुर्वासा की तपोभूमि है आजमगढ़, भगवान राम ने की थी शिवलिंग की स्थापना, जुड़ी है खास ये मान्यताएं

दुर्वासा ऋषि धाम आजमगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि दुर्वासा 12 वर्ष की आयु में चित्रकूट से फूलपुर के गजड़ी गांव के पास तमसा- मंजूसा नदी के संगम पर आकर कई वर्षों तक घोर तपस्या की थी. सती अनुसुइया और अत्रि मुनि के पुत्र महर्षि दुर्वासा सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में इस स्थान पर तपस्या करते रहे.

भगवान शिव और पार्वती का है गहरा नाता

प्राचीन समय में हजारों की संख्या में विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने के लिए यहां आते थे.  इस स्थान का भगवान शिव और माता पार्वती से भी गहरा नाता है. श्रावण मास, कार्तिक मास सहित विभिन्न पर्वों पर प्रतिवर्ष यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु यहां स्नान एवं दर्शन के लिए आते है. आश्रम में एक शांत और पवित्र वातावरण है, जहां श्रद्धालु आत्म-साधना और ध्यान करने के लिए आते हैं. यहां कई मंदिर और पूजा स्थल है, जहां श्रद्धालु प्रार्थना और पूजा करते हैं. आश्रम में एक बड़ा पुस्तकालय भी है. इसमें  प्राचीन ग्रंथ और धर्मशास्त्र की पुस्तकें उपलब्ध है.

88 हजार ऋषियों के साथ किया था तप

माना जाता है कि सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में तो महर्षि दुर्वासा ने यहां 88 हजार ऋषियों के साथ तपस्या और यज्ञ किया था, लेकिन कलयुग का आरंभ होते ही ऋषि दुर्वासा उसी स्थान पर अंतर्ध्यान हो गए.  इस आश्रम में आज भी ऋषि दुर्वासा की भव्य प्राचीन मूर्ति स्थापित है. ऋषि दुर्वासा अत्यंत ज्ञानी होने के साथ क्रोधी स्वभाव के भी थे. उनके इसी क्रोध के कारण देवी-देवता भी उनसे भयभीत रहते थे. महादेव से लेकर देवराज इंद्र तक ऐसे कोई देवी या देवता ना थे जो दुर्वासा ऋषि के गुस्से के भागी ना बने हों.

महर्षि दुर्वासा भगवान शिव के हैं रुद्र अवतार

महर्षि दुर्वासा को भगवान शिव का रुद्र अवतार माना जाता है. वह अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे. उन्होंने अपने श्राप से कई लोगों को दंडित किया. इसलिए, वे जहां कहीं भी जाते थे लोग देवता की तरह उनका आदर करते थे ताकि वे प्रसन्न रहें और क्रोधित होकर कोई श्राप ना दें. आज़मगढ़ में दुर्वासा, दत्तात्रेय और चंद्रमा तीनों ऋषियों के धाम है. पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम यहां आए थे और यहांशिवलिंग की स्थापना की थी. तब महर्षि दुर्वासा का आश्रम यहीं पर था. यह धरती आध्यात्मिक ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. आज़गमढ़ आध्यत्मिक जगत में अपना विशेष स्थान रखता है.

पंचकोसी परिक्रमा के बिना अधूरी मानी जाती है यात्रा

मान्यता है कि दुर्वासा धाम में आने वाले भक्त जब तक पंचकोसी परिक्रमा पूरी ना करें, तब तक यहां की यात्रा अधूरी मानी जाती है. तमसा नदी के किनारे ही त्रिदेवों के अंश चंद्रमा मुनि आश्रम, दत्तात्रेय आश्रम और दुर्वासा धाम स्थित है. इन तीनों पावन स्थलों की परिक्रमा करके पांच कोस की दूरी तय की जाती है. इन तीनों धामों की यात्रा के बिना श्रद्धालुओं को पुण्य लाभ नहीं मिलता है. इसलिए, यहां आने वाले सभी भक्त पंचकोसी परिक्रमा जरूर करते हैं. हर साल यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है, यहां दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

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