ठाठ-बाट से निकली महाकाल की सवारी, चांदी की पालकी पर चंद्रमोलेश्वर स्वरूप में बाबा ने दिए दर्शन
विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी में मार्गशीर्ष माह की दूसरी व कार्तिक- मार्गशीर्ष (अगहन) माह की चौथी सवारी सोमवार 25 नवम्बर को सायं 4 बजे निकाली गईं. सावन-भादो की तरह कार्तिक अगहन मास के साथ मार्गशीर्ष (अगहन) मे भी बाबा महाकाल की सवारी निकलने की परंपरा रही है.
मार्गशीर्ष पक्ष के दूसरे सोमवार को दूसरी सवारी को सभामंडप में शाम 4 बजे विधिवत पूजन-अर्चन के बाद राजसी ठाट-बाट के साथ निकाला गया. अस्टविनायक मंदिर के पुजारी चमु गुरु ने कहा कि आज बाबा ने भगवान श्री चन्द्रमौलीश्वर रजत पालकी में विराजित होकर नगर भ्रमण पर प्रजा का हॉल जानने नगर भ्रमण पर मंदिर परिसर से निकले है.
सभामंडप में पूजन के बाद नगर भर्मण पर निकले बाबा
महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक श्री गणेश कुमार धाकड़ ने कहा कि पालकी को मुख्य द्वार पर सशस्त्र पुलिस बल के जवानों द्वारा भगवान को सलामी (गॉड ऑफ ऑनर) दिया गया. सवारी परंपरानुसार एवं पूर्ण गरिमामय तरीके से निकाली गईं. सवारी में आगे तोपची, कडाबीन, पुलिस बैण्ड घुडसवार दल, सशस्त्र पुलिस बल के जवान नगर वासियों को बाबा के आगमन की सूचना देते चलते हुए दिखाई दिए.
जानिए किन मार्गो से गुजरी सवारी
भगवान महाकाल कि पालकी के साथ पंडे-पुजारियों का दल शामिल रहे.सवारी महाकाल मंदिर चौराहे से गुदरी, कहारवाड़ी होते हुए शिप्रा के रामघाट पर पहुंची, जहां शिप्रा के जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया गया.पूजन के पश्चात सवारी गणगौर दरवाजा, कार्तिकचौक, ढाबारोड, टंकी चौक, तेलीवाड़ा, कंठाल, सतीगेट, सराफा, छद्धीचौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार वापस गुदरी होते हुए महाकाल मंदिर पहुंचकर रात में समाप्त होगी. संपूर्ण सवारी मार्ग पर भगवान महाकाल का मंचों से पुष्पवर्षा कर स्वागत किया गया.
मराठा समय की परंपरा का आज भी प्रभाव
महाकाल मंदिर में मराठा परंपरा का विशेष तौर पर प्रभाव है. महाराष्ट्रीय परंपरा में शुक्ल पक्ष से माह का शुभारंभ माना जाता है. कार्तिक-अगहन मास में भी महाकाल की सवारी कार्तिक शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू होती है. इसी वजह से आज अगहन मास की दूसरी सवारी निकाली गई.