छत्तीसगढ़राज्य

गरीबी हो या अमीरी, भगवान का प्रसाद समझकर जीवन जीना चाहिए : अतुल कृष्ण भारद्वाज

कोरबा  कोरबा अंचल के अग्रसेन मार्ग स्थित मेहर वाटिका में ठण्डुराम परिवार (कादमा वाले) के द्वारा पितृ मोक्षार्थ व गयाश्राद्धान्तर्गत आयोजित कराई जा रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में कथा व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज के श्रीमुख से कथा उच्चरित हो रही है। कथा के सातवें दिन सुदामा प्रसंग, परीक्षित मोक्ष एवं व्यास पूजन का प्रसंग वर्णित किया गया।
        अतुल कृष्ण महाराज ने सभी श्रद्धालुओ के समक्ष भामासुर के विषय से कथा प्रारंभ करते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने भामासुर राक्षस द्वारा अपहृत की गई सोलह हजार एक सौ कन्याओं को युद्ध करके छुड़ाया। समाज द्वारा उनका तिरष्कार ना हो, इसीलिए स्वयं भगवान ने अपने साथ विवाह किया। भगवान श्रीकृष्ण से बड़ा दयालु और कौन होगा, जिनको दुनिया वाले त्याग देते हैं, उसको स्वयं भगवान की शरण में जाना चाहिए। भगवान स्वयं उसका वरण कर लेते हैं।
        कथा व्यास ने कहा कि सुदामा ब्राहम्ण थे परन्तु दरिद्र नहीं। जीवन में गरीबी होना अलग बात है, दरिद्र होना अलग बात है। कोई धनवान भी दरिद्र हो सकता है। ब्राहम्ण दान लेने का अधिकारी तो है, परन्तु भीख माँगने का नहीं। गरीबी होने पर सुदामा भीख नहीं माँगते, पूजा-पाठ एवं कथा में जो आ जाए उसी को भगवत कृपा मानकर स्वीकार कर लेते लेकिन प्रसन्न रहते। सुदामा संतोषी हैं, वह भगवान श्रीकृष्ण से मिलने गए और श्रीकृष्ण ने उन्हें सिंहासन पर बैठाया। चरणों में बैठ गए भगवान, खूब रोए। ये स्वागत ब्राहम्ण का है, किसी दरिद्र का नहीं। समाज को सुदामा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि गरीबी हो या अमीरी, भगवान का प्रसाद समझकर जीवन जीना चाहिए।
        कथा व्यास ने कहा कि दत्तात्रेय के 24 गुरू थे, उनका वर्णन करके बहुत ही सरल ढंग से समझाया कि छोटे-छोटे जीव का सम्मान करके उसमें परमात्मा का दर्शन करें। प्रत्येक पशु-पक्षी भी जीवन में मार्गदर्शक हो सकते हैं, उनसे सीख लेनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण का परिवार बहुत बड़ा हो गया, उनके आग्रह पर पितृ आत्मा की शांति के लिए पूरे परिवार के पितर-तर्पण हेतु सोमनाथ गए, जहाँ तर्पण पश्चात भोग प्रसादी के समय परिवार के सदस्य मदिरा-पान करने को कहे, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण के बहुत मना करने पर नहीं माने और सभी ने मदिरा-पान किया और फिर नशे में आपस में लड़ बैठे। देखते ही देखते भंयकर युद्ध होने लगा, परिणाम स्वरूप पूरा परिवार नष्ट हो गया।
        अंत में परीक्षित के मोक्ष का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया। आचार्य ने कहा कि मृत्यु उसे कहते हैं, जब शरीर शांत हो जाए। मुक्ति-माया क्या है-भ्रम, जो दिख रहा है, वह सत्य लगता है, यह भी भ्रम है। शरीर सब कुछ है, यह भी भ्रम है। नष्ट होने वाली वस्तुएँ शास्वत हैं, यह भी भ्रम है।मकान, जायदाद, मेरा, तेरा भ्रम है, रिश्ते-नाते सत्य हैं, यह भी भ्रम है। यही तो माया है, मैं मेरा, तू तेरा। जो व्यक्ति इससे अलग होकर स्वयं को देखता है, उसका भ्रम तो मिटना है, लेकिन वह सत्य के नजदीक पहुँच जाता है और सत्य वह है, जो भगवान कह रहे हैं, जो मुझसें अलग है, मुझसे भिन्न है, वही माया है और जो मुझमें रमा है, मुझसे जुड़ा है।
        उक्त श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के आयोजक धर्मभीरु रामचन्द्र रघुनाथ प्रसाद अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण रामानंद अग्रवाल, कांशीराम रामावतार अग्रवाल, प्यारेलाल रामनिवास अग्रवाल की ओर से धर्मप्रेमी कथाभक्तो से सपरिवार कथा श्रवण कर पुण्य लाभ अर्जित करने का विनम्र आग्रह करते हुए बताया कि कल 12 सितंबर को पूर्णाहुति व प्रसाद के साथ कथा को विराम दिया जाएगा।

News Desk

The News Desk at Janmorcha.in is committed to delivering timely, accurate, and in-depth coverage of the latest events from across the globe. Our team of seasoned journalists and editors work tirelessly to ensure that our readers are informed with the most current and reliable news. Whether it's breaking news, politics, sports, or entertainment, the News Desk is dedicated to providing comprehensive analysis and insights that matter to our audience. Trust the News Desk at Janmorcha.in to keep you informed with the news that shapes the world around us.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button