बीजेपी सांसद ने किसानों को लेकर दिया विवादित बयान, राजनीति गरमाई
हिसार। एक बार फिर किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतार आए और टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा के विवादित बयान दे दिया है जिससे राजनीतिक में उबाल आ गया है। जांगड़ा ने टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को नशेड़ी कह दिया और आंदोलन के दौरान ह्यूमन ट्रैफिकिंग का आरोप भी लगाया। इसके साथ ही उन्होंने किसान नेताओं पर चंदा वसूली और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने का आरोप भी लगाया है।
किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी
बीजेपी सांसद जांगड़ा के इस बयान पर किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इनेलो और किसान-मजदूर संगठनों ने जांगड़ा से सार्वजनिक माफी मांगने की मांग की है। पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति के प्रधान सरवन सिंह पंढेर ने सांसद के बयान को किसान आंदोलन का अपमान बताते हुए इसकी निंदा की। उन्होंने कहा कि इस तरह के बयानों से किसानों के हौसले को दबाने की कोशिश की जा रही है। वहीं, इनेलो की महिला प्रकोष्ठ की प्रधान महासचिव सुनैना चौटाला ने इसे किसानों के खिलाफ बीजेपी का दुर्भावनापूर्ण रवैया बताया। उन्होंने कहा कि किसानों और उनके आंदोलन को लेकर इस तरह के बयान निंदनीय हैं।
इनेलो पार्टी किसानों के साथ मजबूती से खड़ी है
सुनैना चौटाला ने कहा कि इनेलो के दोनों विधायक किसानों के लिए इस्तीफा देने को तैयार हैं। उन्होंने पीएम मोदी से अपील की कि किसानों की मांगों, विशेषकर एमएसपी की गारंटी को तुरंत पूरा किया जाए। जांगड़ा ने एक बयान में टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों पर आरोप लगाते हुए कहा कि पंजाब के नशेड़ी पिछले एक साल से आंदोलन के नाम पर बैठे हैं। आंदोलन के दौरान ह्यूमन ट्रैफिकिंग हो रही है और गांवों से 700 लड़कियां गायब हो चुकी हैं। उन्होंने किसान नेताओं राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढ़ूनी पर भी सवाल उठाए और आंदोलन के पीछे छुपे गलत मंसूबों का आरोप लगाया। जांगड़ा के बयान के बाद सियासत गरमा गई है।
इनेलो और अन्य विपक्षी दलों ने इसे किसानों का अपमान बताते हुए बीजेपी सांसद से तुरंत माफी मांगने की मांग की है। दूसरी ओर बीजेपी ने इस बयान पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। किसानों और विपक्षी दलों का आरोप है कि बीजेपी नेताओं के इस तरह के बयानों से किसानों की जायज मांगों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।