मध्यप्रदेशराज्य

वनाधिकार और पेसा को धार देगी भाजपा

भोपाल । मप्र में भाजपा एक बार फिर से आदिवासियों पर फोकस करने जा रही है। प्रदेश के इस बड़े वोट को साधने के लिए भाजपा और प्रदेश सरकार वनाधिकार और पेसा कानून को धार देने की तैयारी कर रही है। गौरतलब है कि भाजपा की नजरें विधानसभा की उन 82 सीटों पर हैं, जो अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 230 सीटों की विधानसभा में अनुसूचित जाति (अजा) की 35 और अनुसूचित जनजाति (अजजा) वर्ग के लिए 47 आरक्षित हैं।  यह वर्ग थोकबंद वोट देता है। इसलिए भाजपा इस वर्ग को साधने की लगातार कोशिश करना चाहती है।
अपनी रणनीति के तहत भाजपा अब पेसा अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन पर फोकस करेगी। इसका मकसद अनुसूचित जनजाति वर्ग में पार्टी की पैठ मजबूत करना है। मप्र में एक कारण यह भी है कि यहां अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों से विधानसभा चुनाव में भाजपा को उसके अपेक्षित मत नहीं मिल सके थे, ऐसे में वह पेसा के माध्यम से अनुसूचित जनजातीय वर्ग को लुभाकर उनकी नाराजगी को दूर करना चाहती है। दरअसल, भाजपा की नजर मप्र विधानसभा की उन 47 सीटों पर है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 230 सीटों की विधानसभा में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले 31 सीटें थीं, लेकिन अनुसूचित जाति- जनजाति वर्ग के मुंह मोडऩे से पार्टी के हाथ से सत्ता फिसल गई। वर्ष 2023 के चुनाव में भी भाजपा के साथ एसटी वर्ग वापस नहीं आया है। पेसा एक्ट में जनजातीय वर्ग को अपने स्थानीय स्वशासन से जोडकऱ रखने और उसे सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है। इसके अंतर्गत जनजातीय क्षेत्रों की ग्रामसभा को शक्तिशाली बनाकर उनमें- आदिवासियों के पारंपरिक प्रथाओं के अनुसार प्रशासनिक ढांचा विकसित किया गया है।

सत्ता की चाबी आदिवासी मतदाताओं के हाथों में
मप्र में सत्ता की चाबी आदिवासी मतदाताओं के हाथों में है, यह अतिश्योक्ति नहीं, बल्कि पिछले कई चुनावों के परिणामों का विश्लेषण बताता है। यही एक वजह है कि भाजपा ने पेसा पर अपना फोकस बढ़ाया है। पिछले चुनाव परिणामों को देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था तो पार्टी 29 सीटों पर चुनाव जीती थी। वहीं, 2013 में भी आदिवासियों ने भाजपा का साथ दिया और दो सीट की वृद्धि के साथ 31 सीटों पर पहुंच गई, एक अन्य निर्दलीय भी भाजपा समर्थक ही था, लेकिन 2018 में आदिवासी सीटों ने ही मप्र की राजनीति की तस्वीर बदल दी थी, तब कांग्रेस ने 30 सीटें जीतकर मप्र में सरकार बनाई थी और भाजपा का आंकड़ा गिरकर 16 पर पहुंच गया था। वर्ष 2023 के चुनाव में विधानसभा में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में भी भाजपा को 24 सीट ही जीत पाई जबकि कांग्रेस को 22 और एक पर अन्य को विजय मिली है। यही वजह है कि आदिवासी वर्ग ने भाजपा की चिंता बढ़ाई हुई है। दूसरी वजह झारखंड के चुनाव परिणाम हैं, जहां आदिवासियों ने भाजपा को निराश किया। ये ऐसे कारण है कि भाजपा अब पेसा के बहाने ही अपनी पैठ मजबूत करना चाहती है। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा है कि पेसा कानून में प्रस्तुत समस्त दावों का निराकरण समय-सीमा निर्धारित कर प्राथमिकता पर किया जाए। डा. यादव ने पेसा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जनजातीय कार्य विभाग में पेसा सेल गठित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के अंतर्गत विभिन्न हितग्राहीमूलक योजनाओं में समस्त पात्र भाई-बहनों का शत-प्रतिशत सेचुरेशन सुनिश्चित किया जाए।

News Desk

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