छत्तीसगढ़राज्य

50 बरस में बिजली के खम्बे पहुंची और 77 बरस में पहुंची कोरिया के सुदूर गांवों में बिजली की रोशनी

कोरिया

 छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के सुदूर गांवों में बिजली पहुंचने की यह कहानी केवल तकनीकी विकास की नहीं है, बल्कि धैर्य, संघर्ष और आशा की जीत का प्रतीक है। यह एक ऐसा अवसर है जो इन गांवों के लोगों की जिंदगी में एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया है।

अंधकार से उजाले तक का सफर
1947 में देश को आजादी मिलने के बाद विकास की गंगा देश के हर कोने में बहने लगी। लेकिन कोरिया जिले के तर्रा, बसेर और मेन्द्रा जैसे गांवों को इस गंगा का इंतजार करते-करते 77 वर्ष लग गए। 1997-98 में जब इन गांवों में बिजली के खंभे लगाए गए, तब ग्रामीणों ने सोचा कि अब उनका जीवन भी रोशन होगा। लेकिन वर्षों तक तारों में करंट नहीं दौड़ा। इस दौरान गांव के लोग सौर ऊर्जा या फिर मिट्टी के तेल के दीयों के सहारे जिंदगी गुजारते रहे।

मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना: एक नई शुरुआत
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी ने मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना के तहत इन गांवों को रोशन करने का बीड़ा उठाया। ग्राम तर्रा में 55 लाख रुपए की लागत से 12 किमी 11 केवी और 9 किमी एलटी लाइन बिछाई गई। 3 ट्रांसफार्मर लगाए गए और 88 घरों को बिजली कनेक्शन मिला। ग्राम बसेर में 1.08 करोड़ रुपए की लागत से 8 किमी 11 केवी और 6 किमी एलटी लाइन का विस्तार हुआ। 7 ट्रांसफार्मर लगाए गए और 230 घरों में बिजली पहुंची। ग्राम मेन्द्रा में 54 लाख रुपए की लागत से 9 किमी 11 केवी और 6 किमी एलटी लाइन बिछाई गई। 2 ट्रांसफार्मर लगाए गए और 64 घरों में बिजली की सप्लाई शुरू हुई।

ग्रामीणों के लिए बदलाव की नई किरण
गांवों में बिजली पहुंचने के बाद न केवल रातें रोशन हुईं, बल्कि जीवन की दिशा भी बदली। ग्राम बसेर की छात्रा सुखमतिया ने कहा, "अब मैं देर रात तक पढ़ाई कर सकती हूं। बिजली ने मेरी पढ़ाई को आसान बना दिया है।" सुखमतिया की मां शांति बाई ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, "गर्मी में अब पंखा खरीदेंगे। जीवन पहले से आसान और आरामदायक हो जाएगा।"  बिजली से गांवों में छोटे व्यवसाय शुरू करने की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। बिजली आने से घरों में रोशनी ही नहीं, रोजगार और आय के साधन भी आएंगे।

अब अगला लक्ष्य 4जी टॉवर
जिले के कलेक्टर चंदन त्रिपाठी ने बताया, "सही योजनाओं के कारण ही इन गांवों में बिजली पहुंच पाई है।" उन्होंने कहा कि, "हमने मार्गों का गहन सर्वेक्षण कराया, सड़कें बनाई गईं और वन विभाग से मदद मांगकर बिजली के खंभे लगाए गए और गांवों में बिजली पहुंचाई गई। शुरुआत में चीजें कठिन थीं क्योंकि यह घने जंगल और सुदूर क्षेत्र था।" एप्रोच रोड भी नहीं था, लेकिन लोगों की इच्छाशक्ति और  समाज के विभिन्न तबकों के सहयोग की वजह से सम्भव हुआ है। श्रीमती त्रिपाठी ने कहा कि अगला लक्ष्य उन्हें 4जी बीएसएनएल मोबाइल नेटवर्क दिलाना है।" उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी ने मुख्यमंत्री मजराटोला विद्युतीकरण योजना के तहत इन गांवों को रोशन करने का काम अपने हाथ में लिया है। कलेक्टर ने कहा जिन गांवों, पारा-मोहल्ले में बिजली नहीं पहुंची है, वहां भी शीघ्र पहुंचाने कार्य चल रही है। निश्चित ही इन ग्रामीणों के घरों में बिजली कनेक्शन होने से अंधेरे से मुक्ति मिली है।

संघर्ष और आशा की कहानी
ग्राम पंचायत बसेर के सरपंच नाहर सिंह ने बताया कि 1997-98 में जब खंभे लगाए गए थे, तब ग्रामीणों ने कई सपने देखे थे। लेकिन बिजली न होने के कारण उन सपनों पर अंधकार छा गया। हालांकि इन गांवों में सोलर पैनल के माध्यम से  बिजली पहुंचने से कुछ हद तक राहत मिली थी। सरपंच ने बताया कि लगातार प्रशासन से मांग और प्रयास के बाद आखिरकार 2024 में इन गांवों में बिजली पहुंची। बिजली का गांवों में पहुंचना केवल रोशनी का आगमन नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक उन्नति के नए द्वार खोलने का संकेत है। आजादी के 77 वर्षों बाद बिजली का पहुंचना विकास की एक नई लहर है। यह गांवों के लिए एक नई शुरुआत है, जो उनकी जिंदगी में उजाले के साथ-साथ नई संभावनाओं को भी लेकर आई है।

News Desk

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