छत्तीसगढ़राज्य

कर्मा पर्वः जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक मान्यताएँ का पर्व

मनेन्द्रगढ़/एमसीबी

कर्मा पर्व भारतीय जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक मान्यताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका सीधा संबंध कृषि, पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने से है। मध्य भारत के आदिवासी समाज विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के जनजातीय समुदायों द्वारा बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाला यह पर्व फसल के कटाई के समय कृषि के प्रति सम्मान और समृद्धि की प्रार्थना का अवसर होता है। इस लेख में, हम कर्मा पर्व की उत्पत्ति, इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व, जनजातीय परंपराओं, तथा इस पर्व को मनाने की विभिन्न विधियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कर्मा पर्व की उत्पत्ति और धार्मिक मान्यताएँ
कर्मा पर्व की उत्पत्ति मुख्यत कृषि और प्रकृति के प्रति आदिवासी समाजों की गहरी श्रद्धा और आस्था से जुड़ी है। ’’कमा’र्’ शब्द का तात्पर्य कर्म (परिश्रम) और कर्म (भाग्य) से है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि मनुष्य अपने कर्मों द्वारा सफलता प्राप्त करें और साथ ही भाग्य भी उसका साथ दे। कर्मा को एक लोक देवता के रूप में पूजा जाता है, जो कृषि, फसल की वृद्धि और प्राकृतिक समृद्धि का प्रतीक होते हैं। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन जनजातीय समाज विशेष रूप से करम देवता की पूजा करता है, जिनसे वे फसलों की समृद्धि और गांव की खुशहाली की कामना करते हैं। कर्मा देवता की पूजा के दौरान गांव के बैगा (पुजारी) द्वारा कर्म राजा की कथा सुनाई जाती है, जो कर्मा पर्व के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को और भी बढ़ाती है। पूजा के उपरांत करमा नृत्य का आयोजन किया जाता है, जिसमें महिलाएँ और पुरुष सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं ।

कर्मा पर्व की शुरुआत करम वृक्ष की एक डाली को गांव के प्रमुख व्यक्ति के आँगन में गाड़कर की जाती है। इस डाली को करम देवता का प्रतीक माना जाता है और उसकी विधिवत पूजा की जाती है। महिलाएं इस पर्व की तैयारी तीजा पर्व के दिन से ही शुरू कर देती हैं। वे टोकरी में जौ, गेहूँ, मक्का, धान और अन्य फसलों के बीज बोती हैं, जिसे ’’जाईं’’ कहा जाता है। यह जाईं करमा पर्व के दिन तक विकसित हो जाता है और इसी के साथ करम देवता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान, इस जाईं को फूलों से सजाया जाता है और उसमें एक खीरा रखकर करम देवता को अर्पित किया जाता है।  पूजा के बाद रातभर करम देवता के चारों ओर करमा नृत्य किया जाता है।  महिलाएं  गोल घेरे में श्रृंखला बनाकर नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष गायक, वादक और नर्तक उनके बीच होते हैं।करमा नृत्य के दौरान मांदर, झाँझ, मोहरी (शहनाई) जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है। सूर्योदय से पहले करम देवता का विसर्जन किया जाता है, जो इस पर्व का समापन संकेत करता है।

मध्य भारत के गोंड, संथाल, मुंडा, हो जैसी जनजातियाँ कर्मा पर्व को विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। इन समुदायों में कर्मा पूजा के दौरान पारंपरिक नृत्य और गीतों का आयोजन किया जाता है। लोग रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं और सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। गोंड जनजाति में, करम देवता की छवि को पवित्र स्थल पर स्थापित किया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। झारखंड के साथ छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के आदिवासी समुदाय एवं अन्य समुदाय के लोग इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। छत्तीसगढ़ की बात करे तो सबसे ज्यादा सरगुजा और कोरबा संभाग बड़े हो धूमधाम से मनाते है, यहां करम देवता की पूजा फसलों की सुरक्षा और गांव की समृद्धि के लिए की जाती है । इस करमा पर्व को उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के जनजातीय समुदाय भी इस पर्व को अपने अनूठे तरीके से मनाते हैं। इन क्षेत्रों में कर्मा पर्व के दौरान पशु बलि की परंपरा है, जो समाज की धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है। यहां भी पारंपरिक नृत्य, गीत और विशेष भोज का आयोजन किया जाता है, जो सामूहिक एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।

सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक एकता का संदेश देता कर्मा पर्व
कर्मा पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जनजातीय समाजों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग है। यह पर्व जनजातीय समाजों की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। सामूहिक भोज, पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से जनजातीय समाज अपनी संस्कृति और परंपराओं को और उनके एकता को आज भी जीवित रखते हैं। यह पर्व समाज में सामाजिक एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है, जहां लोग मिल-जुलकर पर्व का आनंद लेते हैं और एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियाँ साझा करते हैं। कर्मा पर्व के दौरान जनजातीय समाज के लोग सामूहिक रूप से अपने देवताओं और पूर्वजों की पूजा करते हैं। यह पर्व सामूहिकता, सहयोग और पारस्परिक सम्मान का प्रतीक है। गांवों में इस दिन सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं और आपस में प्रेम और सौहार्द की भावना का प्रसार करते हैं।

आधुनिक समय में भी कर्मा पर्व का आज भी महत्व है?

वैश्वीकरण और आधुनिकता के प्रभाव के बावजूद, करमा पर्व का महत्व आज भी जनजातीय समाजों में बरकरार है। हालांकि कुछ जनजातीय समुदायों में इस पर्व की पारंपरिक विधियाँ बदल गई हैं, फिर भी लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। आधुनिक युग में भी, कर्मा पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह जनजातीय समाजों की सांस्कृतिक पहचान और उनके सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने का एक साधन भी बन गया है। कर्मा पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक पुनरावलोकन का अवसर भी प्रदान करता है। यह पर्व आदिवासी समाजों को अपनी जड़ों की ओर लौटने और अपनी परंपराओं को फिर से जीवित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। विभिन्न जनजातीय समुदायों में कर्मा पर्व को मनाने की विधियाँ उनकी सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि का प्रतीक हैं।

कर्मा पर्व भारतीय जनजातीय समाजों की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है। यह पर्व कृषि, फसलों और प्रकृति के प्रति आदिवासी समाजों की गहरी श्रद्धा और आस्था को दर्शाता है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जनजातीय समाजों की सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक जीवन का भी एक अभिन्न हिस्सा है। सामूहिक नृत्य, गीत और पूजा-अर्चना के माध्यम से जनजातीय समाज अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपनी परंपराओं से जोड़ते हैं।

News Desk

The News Desk at Janmorcha.in is committed to delivering timely, accurate, and in-depth coverage of the latest events from across the globe. Our team of seasoned journalists and editors work tirelessly to ensure that our readers are informed with the most current and reliable news. Whether it's breaking news, politics, sports, or entertainment, the News Desk is dedicated to providing comprehensive analysis and insights that matter to our audience. Trust the News Desk at Janmorcha.in to keep you informed with the news that shapes the world around us.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button