रेप मामले में पति को अपवाद की श्रेणी में रखे जाने के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को परखेगा सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आईपीसी और बीएएनस में रेप के मामले में पति को अपवाद की श्रेणी में रखे जाने के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को परखेगा। आईपीसी की धारा-375 के अपवाद 2 और बीएनएस की धारा-63 में प्रावधान है कि अगर पत्नी बालिग है तो उसके साथ पति का जबरन संबंध रेप नहीं होगा। इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से केंद्र सरकार के स्टैंड पर मत जानना चाहा।
केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि अगर पति को पत्नी के साथ संबंध बनाने के मामले में रेप के दायरे में लाया जाएगा तो दांपत्य जीवन पर इसका गलत असर पड़ेगा। शादी संस्थान खतरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस स्टैंड पर याचिकाकर्ता से अपना पक्ष रखने को कहा। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट करुणा नंदा ने दलील में आईपीसी और बीएनएस कानून में रेप के मामले में पति को अपवाद रखे जाने के प्रावधान को कोर्ट के सामने रखा।
आईपीसी की धारा-375 के अपवाद 2 और बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धारा-63 के प्रावधान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन मामलों में बालिग पत्नी के साथ जबरन पति के संबंध के मामले में रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता है। इस पर चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि आप जो दलील दे रही हैं वह एक संवैधानिक सवाल है। हमारे सामने दो फैसले हैं जिसे हमें देखना है। लेकिन मुख्य मुद्दा इस कानूनी प्रावधान के संवैधानिक वैधता को लेकर है। इस पर एडवोकेट नंदी ने कहा कि कोर्ट को इस प्रावधान को निश्चित तौर पर निरस्त करना चाहिए क्योंकि यह गैर संवैधानिक है।
करुणा नंदी ने याचिकाकर्ता की ओर से दलील पेश करते हुए कहा कि हम आईपीसी की धारा-375 के अपवाद 2 को चुनौती दे रहे हैं। यह प्रावधान अब बीएनएस की धारा-63 में है। आईपीसी के अपवाद में कहा गया है कि 15 साल से ऊपर की उम्र की पत्नी के साथ जबरन संबंध रेप नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि बीएनएस में अब 18 साल कर दिया गया है। आईपीसी और बीएनएस में सिर्फ यह अंतर है कि आईपीसी में 15 साल और बीएनएस में 18 साल से ऊपर में अपवाद है। करुणा नंदी ने कहा कि अगर पत्नी के साथ अप्राकृतिक संबंध भी बनाया जाता है तो वह भी अपवाद है। चीफ जस्टिस ने कहा यानी कि अप्राकृतिक या प्राकृतिक कोई भी संबंध अगर पति द्वारा शादी में बनाया जाता है तो वह रेप नहीं होगा? इस दौरान जस्टिस पारदीवाला ने सवाल किया कि सेक्सुअल एक्ट राइट नहीं है।
चीफ जस्टिस ने याची के वकील से सवाल किया कि अगर पति महिला के साथ जबरन संबंध बनाता है तो वह अपवाद में आएगा यही आपका केस है। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप कह रहे हैं कि यह समानता के अधिकार और जेंडर फ्रीडम का उल्लंघन करता है। लेकिन संसद चाहता है कि पति अगर पत्नी से संबंध बनाता है तो वह रेप नहीं होगा। अगर हम इस अपवाद को खत्म कर देते हैं तो हमें नया अपराध की तरह इसे श्रेणी में डालना होगा। नंदी ने कहा कि तीन तरह के केस होते हैं। एक रेपिस्ट जो विक्टिम से संबंधित न हो, दूसरा जो बिना सहमति के पति संबंध बनाता है और तीसरी श्रेणी वह है जिसमें पति सेपेरेशन में हो तब उसने ऐसा एक्ट किया है। नंदी ने दलील दी कि लिव इन में जबरन संबंध रेप है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि आपकी दलील के तहत अगर पति कोई भी ऑब्जेक्ट डालता है तो वह रेप नहीं है जबकि कोई और महिला के प्राइवेट पार्ट में कोई ऑब्जेक्ट डालता है तो रेप है। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अगर पति डिमांड करता है और पत्नी मना करती है और पति धमकाता है और जबर्दस्ती करता है तो फिर आईपीसी की धारा-323, 324 और 325 आदि बनता है। लेकिन रेप नहीं बनता है। इस पर नंदी ने कहा कि यह महिला (मेरा) का अधिकार है कि ना कहूं यह मेरा अधिकार है कि मैं हां कहूं। इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि ना कहने की स्थिति में पति नहीं को मानकर तलाक ले? इस पर करुणा नंदी ने कहा कि महिला के पति को अगले दिन का इंतजार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी।