
बस्तर
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में रहने वाले हजारों आदिवासियों के लिए तेंदू पत्ता सग्रहण हर साल आजीविका का आधार बनता है, लेकिन इस बार समय से पहले हुई बारिश से उनकी रोजी-रोटी पर गहरा असर हुआ है. मौसम की मार ने न सिर्फ पत्तों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि उनकी आमदनी पर भी गहरा असर डाला है.
इस वर्ष बस्तर रेंज के चार जिलों जगदलपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में 2 लाख 70 हजार 600 मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 119 लॉट की व्यवस्था की गई, लेकिन 1 जून 2025 तक केवल 92 लॉट में ही संग्रहण कार्य शुरू हो पाया है. अब तक इन चार जिलों में कुल 1 लाख 17 हजार 859 मानक बोरा तेंदूपत्ता ही संग्रहित हो सका है, जो निर्धारित लक्ष्य का महज 43.55 प्रतिशत है. विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि समय से पहले आई प्री-मानसून बारिश और ओलावृष्टि ने पत्तों को नष्ट कर दिया, जिससे तेंदूपत्ता की मात्रा और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हुई है.
पिछले वर्षों के मुकाबले 2025 की स्थिति काफी कमजोर नजर आती है. वर्ष 2023 में पूरे राज्य में 16.72 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहित हुआ था, जिनमें से लगभग 11.37 लाख बोरे बेचे गए थे और इससे सरकार को 822 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था. उस समय प्रति बोरा औसत बिक्री दर 7,199 रुपए थी. वर्ष 2024 के आंकड़े आंशिक रूप से सामने आए थे, जिनमें 36,229 संग्राहकों को कुल 12.44 करोड़ रुपए का पारिश्रमिक भुगतान किया गया था. इस बार 2025 में प्रति बोरा दर 5,500 रुपए रखी गई है और अब तक का संग्रहण लगभग 64.28 करोड़ रुपए का अनुमानित राजस्व देता है, जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी कम है.
बस्तर के आदिवासी समुदाय के लिए तेंदूपत्ता सिर्फ एक वन उत्पाद नहीं, बल्कि उनकी गर्मियों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया है. खेतों में काम बंद होने के बाद ग्रामीण परिवार तेंदूपत्ता तोड़ने में जुट जाते हैं और इससे मिलने वाला पारिश्रमिक कई बार पूरे साल के खर्चों में सहारा बनता है. एक परिवार सीजन में 3,000 रुपए से 8,000 रुपए तक की कमाई कर लेता है. तेंदूपत्ता के अलावा साल बीज, महुआ, इमली, हर्रा, बहेड़ा, लाख, गोंद और चिरौंजी जैसे वनोपज भी आदिवासियों की कमाई के साधन हैं, लेकिन स्थायी और व्यवस्थित भुगतान का जरिया तेंदूपत्ता ही है.
बाजार की बदलती मांग भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीड़ी की मांग में गिरावट के कारण तेंदूपत्ता की लॉट बिक्री प्रभावित हुई है. वर्ष 2023 में 119 लॉट में से केवल 78 लॉट ही बिक सके थे, जिससे सरकार और संग्राहकों दोनों को नुकसान झेलना पड़ा. परिणामस्वरूप कई संग्राहकों को पारिश्रमिक मिलने में भी देरी हुई और समितियों को भारी घाटा उठाना पड़ा.
स्थानीय संग्राहकों का कहना है कि इस बार पत्ते समय से पहले झड़ गए, कुछ सूख नहीं पाए और कई स्थानों पर तो संग्रहण शुरू होने से पहले ही पत्ते खराब हो गए.
बीजापुर की रामबती कश्यप बताती हैं, बारिश ने सब बिगाड़ दिया. इस बार पत्ता कच्चा रहा और सूखने से पहले ही गल गया. सरकार पैसा देती है, लेकिन जितना पत्ता ही नहीं हुआ तो क्या करें.
बस्तर में तेंदूपत्ता संकट एक चेतावनी है कि बदलते मौसम, बाज़ार की अस्थिरता और योजनाओं की समयबद्ध क्रियान्वयन में लापरवाही आदिवासियों की आर्थिक रीढ़ को कमजोर कर रही है. जरूरत है कि सरकार तेंदूपत्ता संग्रहण की प्रक्रिया को और व्यवस्थित बनाए, मौसम के असर से बचाव के लिए वैकल्पिक उपाय खोजे और अन्य वनोपजों को भी प्राथमिकता देकर आय के स्रोतों का विस्तार करे.