बांग्लादेश के हिंदुओं की कष्टपूर्ण कहानी; 1971 में 20 प्रतिशत थी आबादी, अब केवल इतनी बची…
बांग्लादेश में मौजूदा घटनाक्रम ने हिंदू समुदाय के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा इस्कॉन मंदिर को बंद करने की मांग और हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार एक चिंताजनक तस्वीर पेश कर रहे हैं।
पिछले कुछ दशकों में हिंदू बांग्लादेशियों की आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट देखी गई है। 1971 में जब बांग्लादेश बना तब वहां हिंदुओं की आबादी कुल आबादी का 20 फीसदी थी।
अब ये घटकर महज 8 फीसदी बची है। इसके लिए जिम्मेदार वे लोग हैं जो इस्लामी चरमपंथ का समर्थन करते हैं, जिनमें से कई घरेलू आतंकवाद में भी शामिल हैं।
बांगलादेश के हिंदुओं की दर्दभरी दास्तां
बांगलादेश के हिंदू समुदाय की दास्तां बहुत ही दर्दभरी और संघर्षपूर्ण रही है, खासकर 1947 के बंटवारे और 1971 के बांगलादेश स्वतंत्रता संग्राम के बाद। बांगलादेश का विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम न केवल राजनीति का मुद्दा था, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और पहचान के संघर्ष का भी सवाल था।
इन घटनाओं ने बांगलादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति को गहरे रूप से प्रभावित किया। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार 1964 से 2013 के बीच धार्मिक उत्पीड़न और असहिष्णुता के कारण 1.13 करोड़ हिंदू बांग्लादेश से भाग गए हैं। हर साल 230,000 अतिरिक्त हिंदू बांग्लादेश छोड़कर चले जाते हैं। पड़ोसी देश में हिंदुओं के उत्पीड़ की कहानी दशकों पुरानी है।
1947 का बंटवारा
भारत का विभाजन (1947) हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष और दंगे लेकर आया, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए। बांगलादेश (जिसे तब पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था) में हिंदुओं को भी भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली बोलने वाले बहुसंख्यक थे और वे पश्चिमी पाकिस्तान की उपेक्षा और शोषण से त्रस्त था। बंटवारे के बाद लाखों हिंदू अपने घरों और संपत्तियों को छोड़कर भारत के विभिन्न हिस्सों में पलायन करने पर मजबूर हो गए।
1971 का स्वतंत्रता संग्राम और संघर्ष
बांगलादेश का स्वतंत्रता संग्राम 1971 में पाकिस्तान से अलग होने की प्रक्रिया के दौरान हुआ, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ बांगलादेश के नागरिकों ने हथियार उठाए।
इस आंदोलन में बंगाली राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान का बड़ा योगदान था। जब 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी, अवामी लीग, ने बहुमत हासिल किया, तो पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इसके बाद 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ।
इस युद्ध के दौरान हिंदू समुदाय विशेष रूप से निशाने पर था। पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगी बलों ने हिंदू नागरिकों को अत्यधिक हिंसा, बलात्कार, हत्या और लूटपाट का शिकार बनाया। इस समय हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं विशेष रूप से बढ़ गईं। हजारों हिंदू परिवारों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा और लाखों लोग भारत में शरण लेने के लिए भागे।
बांग्लादेश की आजादी में हिंदुओं का योगदान
हिंदू समुदाय ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय पूर्वी पाकिस्तान की 19-20% आबादी हिंदू थी। हिंदू समुदाय ने आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में आंदोलन को मजबूती दी। इसके अलावा, मुक्ति वाहिनी में हिंदू सैनिकों की भी बड़ी संख्या थी। भारत की सैन्य मदद के साथ 1971 में बांग्लादेश की स्थापना हुई।
फिर भी जारी रहा हिंदुओं का उत्पीड़न
1971 के युद्ध के दौरान, हिंदू समुदाय के कई लोग अपनी जमीन-जायदाद, घर, और संपत्ति से हाथ धो बैठे। बांगलादेश में हिंदू मंदिरों, पूजा स्थलों और सांस्कृतिक धरोहरों को भी नष्ट किया गया।
इसके अलावा, कई हिंदू धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी निशाना बनाया गया। 1971 में बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग 20% थी। लेकिन आज यह घटकर केवल 8% के आसपास रह गई है।
कारण
इस्लामी कट्टरपंथ और सामाजिक भेदभाव एक बड़ा कारण रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से धर्मांतरण बढ़ाने से लेकर सांप्रदायिक धार्मिक प्रथाओं के माध्यम से उग्रवाद को बढ़ावा देने तक, इस्लामी चरमपंथी अंतर-सामुदायिक हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं।
वे जबरन धर्मांतरण, यौन हमले, अपहरण और आत्मघाती बम विस्फोट से हिंदुओं को निशाना बनाते हैं। इसके अलावा, 1974 में ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ जैसे कानून बने, जिनके कारण हिंदुओं की जमीनें और संपत्तियां छीन ली गईं थीं।
इसके तहत बांग्लादेश की सरकार को उन हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा करने का विकल्प था, जो देश छोड़कर भाग गए, या भगा दिए गए. इस कानून के तहत वहां की सरकार ने लाखों एकड़ जमीन अपने कब्जे में ले ली।
कुछ सालों पहले ही ये नियम बदला। दंगों और अत्याचारों के चलते बड़ी संख्या में हिंदुओं को भारत पलायन करना पड़ा। हालिया घटनाओं ने हिंदुओं की आबादी में गिरावट को और तेज कर दिया है।
मौजूदा स्थिति: लोकतंत्र और अल्पसंख्यक संकट
शेख हसीना के नेतृत्व में, बांग्लादेश ने धर्मनिरपेक्षता की दिशा में प्रयास किए। हालांकि, उनकी सरकार के पतन के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस के अंतरिम शासन के तहत हिंदुओं की स्थिति खराब होती जा रही है।
अल्पसंख्यकों पर हमले और इस्लामी कट्टरता का उदय
हिंदू मंदिरों और मूर्तियों को निशाना बनाया जा रहा है। इस्कॉन मंदिर पर प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है। धार्मिक कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव से हिंदू समुदाय के लिए भय का माहौल बन रहा है।
भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
हालांकि बांगलादेश में हिंदू समुदाय अब भी मौजूद है, उनकी स्थिति अभी भी चुनौतीपूर्ण है। भले ही बांगलादेश में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन हिंदू समुदाय आज भी कई प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करता है।
मंदिरों पर हमले, सांप्रदायिक हिंसा, जमीन की हानि और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा अब भी बांगलादेश में हो रही हैं।
भारत ने हमेशा बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की वकालत की है। 1971 में भारत ने बांग्लादेश के गठन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। आज जरूरत है कि भारत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय बांग्लादेश सरकार पर दबाव डालें ताकि अल्पसंख्यकों को सुरक्षा और समान अधिकार मिल सके।
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