छत्तीसगढ़राज्य

एक उत्पाती हाथी के ‘कुमकी हाथी’ बनने की कहानी

रायपुर

    उत्पात मचाते हुये एक युवा दंतैल हाथी को राजनांदगांव की तरफ़ जाते हुए वन विभाग ने ग्यारह सांल पूर्व पकड़ा, और उसको सरगुजा से तीन साल पूर्व लाली हथिनी का जोड़ीदार बनाने अचानकमार टाइगर रिजर्व ( छतीसगढ़) में सिहावल लाया गया। इसका नाम रखा गया राजू उसे सँगनी के रूप में 'लाली' मिल गई। आज यह दंतैल 'कुमकी हाथी' है। यह कहानी इसी दंतैल हाथी की है।

 मादा-नर हाथी के साथ होने  इस टाइगर रिजर्व में एक एलिफेंट कैप का प्रादुर्भाव हुआ। आज इस कैम्प इन हाथियों के लिए सौर ऊर्जा से चलित  मोटर पंप है, तीन शेड और मेडिकल किट के साथ महावत के परिवार है। कैप में हाथी दम्पति के दो शावक हुए हैं।

 राजू हाथी आज एक ऐसा साधा हाथी है जो रोज गश्त में निकल कर जंगल की सुरक्षा करता,गश्त में लाली और इनका युवा होता बेटा सावन भी साथ होता है। एटीआर(अचानकमार टाइगर रिजर्व ) में लकड़ी,चोरी करने लिए राजू हाथी 'दरोगा' से कम नहीं। वह अपने बड़े-बड़े कानों से लकड़ी कटाई की आवाज सुन कर पग-पग चोरों के करीब पहुंचता और उसे देखते लकड़ी चोर दहशत में भाग खड़े होते हैं। पर साइकिल छूट जाती हैं। राजू सूंड से साइकिल उठा कर महावत को दे देता हैं। सौ से ज्यादा साइकिल राजू हाथी उठा कर ला चुका है।

   हाथी राजू के सिर पर बहुत काम है, जैसे गश्त के दौरान सड़क पर गिरे पेड़ को किनारे करना, गिरे पेड़ की डालें और पेड़ से चारा तोड़ कर अपने परिवार के लिए लाना, सूरजपुर में दो आदमियों को मारने वाली घायल टाइग्रेस रायपुर सफारी में उपचार उपरांत जब कॉलर लगा कर एटीआर में छोड़ी गई तो महावत और राजू की निगरानी उसकी गतिविधियों पर बनी रही।
   मदकाल में राजू मदमस्त   हो जाता है तब महावत शिवमोहन राजवाड़े के अलावा किसी को करीब फटकने नहीं देता। हाथी राजू और परिवार के लिए चारा के अलावा और भी उनके पसंदीदा आहार दिया जाता है। जिसमें विविध अन्न और तेल,गुड़ सब सही अनुपात में मिला कर बनाया जाता। यह उनको पालतू बनाने से लेकर जीवित रहने तक दिया जाता है, नहीं तो जंगल में उसके खाने की कोई कमी नहीं। डाक्टर पी के चंदन यहां हाथियों के कुनबे की स्वास्थ्य की जांच करने एलिफेंट कैम्प नियमित पहुंचते हैं।

   हमारा हीरो हाथी राजू अब पूरे कद का विशाल दंतैल हो गया है वह सध चुका है कुमकी हाथी की तरह।

      कुमकी हाथी किसे कहते हैं
कुमकी हाथी वह बड़े और सधे हाथी होते हैं जो आवाज के साथ महावत के पैर के इशारे भी समझते और चलते हैं। यह खामोशी जरूरी है क्योकि जब किसी 'जंगली हाथी या टाइगर की घेराबन्दी करनी हो तो मनुष्य की आवाज वह 'चक्रव्यूह' से निकल सकता है। इसलिए कुमकी हाथी पर सवार महावत पैर से हाथी के कान के करीब इशारों से दाएं, बाएं,रुकना,झुकना ख़ामोश संकेत देता है जिससे योजना कामयाब होती है।

 राजू हाथी कल उपद्रवी हाथी कुमकी हाथी बन चुका है। उसका युवा बेटा सावन भी कुमकी हाथी बनने की राह में है। वह भी पिता के साथ गश्त में जाता है और पांव के इशारे से चलने लगा है। हमारे  'कुमकी हाथी, राजू को बार नवापारा अभयारण में बाहर से आये अजनबी टाइगर को पकड़ने के लिए एटीआर से भेजा गया था,लेकिन बरसात के वजह यह काम रुक गया। (वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा, मप्र और छतीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य रहे हैं

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