उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि बच्चों में विदेश जाने की बढ़ती प्रवृत्ति एक नई बीमारी बन गई है, जो देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है…
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि विदेश जाना देश के बच्चों को जकड़ने वाली नई बीमारी है।
उन्होंने कहा कि यह “विदेशी मुद्रा का पलायन और प्रतिभा का पलायन” है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के व्यावसायीकरण से इसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।
राजस्थान के सीकर में एक निजी शिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित समारोह में बोलते हुए धनखड़ ने कहा, “बच्चों में एक और नई बीमारी है – विदेश जाने की।
बच्चा उत्साह से विदेश जाना चाहता है, वह एक नया सपना देखता है; लेकिन उसे इस बात का कोई आकलन नहीं होता कि वह किस संस्थान में जा रहा है, किस देश में जा रहा है।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शिक्षा के ‘व्यवसायीकरण’ पर चिंता जताते हुए शनिवार को कहा कि इससे बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा में निवेश भविष्य, आर्थिक उत्थान, शांति और स्थिरता में निवेश करने जैसा है।
उन्होंने कहा, “शिक्षा के व्यावसायीकरण ने उसकी गुणवत्ता को प्रभावित किया है। शिक्षा कभी भी आय का स्रोत नहीं था, यह त्याग और दान का एक माध्यम था, जिसका उद्देश्य समाज की मदद करना था लेकिन हम देखते हैं कि इसको फायदे के लिए बेचा जा रहा है। कुछ मामलों में तो यह जबरन वसूली का रूप ले रहा है।”
एक नई बीमारी और है बच्चों में – विदेश जाने की।
बच्चा उत्साहपूर्वक विदेश जाना चाहता है, उसको नया सपना दिखता है; लेकिन कोई आकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है।
आधिकारिक बयान के अनुसार उन्होंने कहा, “शैक्षणिक संस्थाओं को अगर आप अर्थ-लाभ के चश्मे से देखेंगे तो आपका उद्देश्य धूमिल हो जाएगा। हमें आवश्यकता है हम ऐसा ना होने दे। मेरा यह आग्रह रहेगा की संस्था का पैसा संस्था के विकास के लिए ही लगे।”
उन्होंने कहा, “हमारा संकल्प होना चाहिए कि जब भारत 2047 में विकसित राष्ट्र बने तब हम दुनिया की ‘सुपर नॉलेज पावर’ होने चाहिए।”
उपराष्ट्रपति ने व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और व्यवसाय जगत में लोगों से अपील करते हुए उनसे संस्थानों के विकास में उदारतापूर्वक योगदान देने की बात कही।
उन्होंने कहा, “शिक्षा में निवेश हमारे भविष्य, आर्थिक उत्थान, शांति और स्थिरता में निवेश है।” धनखड़ ने कहा, “आज युवाओं के बीच लगातार बढ़ते अवसरों को लेकर जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज भारत का विश्व में बहुत महत्व है। आज, भारत की आवाज वैश्विक स्तर पर पहले से कहीं अधिक बुलंद है। ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति को यह धारणा और निष्ठा रखनी चाहिए कि हमें अपने राष्ट्र पर विश्वास करना है। हर परिस्थिति में हमें राष्ट्र को पहले रखना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि राजनीतिक, व्यक्तिगत या आर्थिक हितों को राष्ट्र के ऊपर नहीं रखना चाहिए और यह हमारा दायित्व है कि हम राष्ट्रविरोधी शक्तियों को निष्क्रिय करें।
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