मध्यप्रदेशराज्य

 सौरभ-चेतन रिमांड पर…क्या खुलेगा काले धन का राज?

लोकायुक्त ऑफिस में पांच घंटे की पूछताछ के बाद पूर्व आरक्षक और सहयोगी चेतन गौर को कोर्ट में किया गया पेश, शरद जायसवाल भी हिरासत

भोपाल । परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा और उसके सहयोगी चेतन गौर को कोर्ट ने 4 फरवरी तक रिमांड पर सौंप दिया। लोकायुक्त पुलिस ने मंगलवार को उन्हें गिरफ्तार किया था। उनसे पहले लोकायुक्त ऑफिस में करीब 5 घंटे तक पूछताछ की गई। इसके बाद कोर्ट में पेश किया गया। इधर, सौरभ के पार्टनर शरद जायसवाल भी मंगलवार दोपहर को अपने वकील के साथ लोकायुक्त में बयान दर्ज कराने पहुंचे। बयान दर्ज करने के बाद लोकायुक्त पुलिस ने उन्हें भी हिरासत में ले लिया है। ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि क्या सौरभ शर्मा के यहां से जब्त कालेधन का राज खुल पाएगा?
जिस सौरभ शर्मा को तीन एजेंसियां करीब 40 दिन से ढ़ूढ रहीं थी उसे मंगलवार के दिन कोर्ट में सरेंडर करने से पहले ही लोकायुक्त ने हिरासत में ले लिया। सोमवार को भोपाल कोर्ट में वकील राकेश पाराशर ने मुवक्किल सौरभ के सरेंडर को लेकर आवेदन दिया था। कोर्ट ने सौरभ की केस डायरी लोकायुक्त से मांगी थी। लेकिन इससे पहले ही मंगलवार सुबह 11 बजे कोर्ट में पेश होने से पहले ही सौरभ शर्मा को लोकायुक्त की टीम ने हिसासत में ले लिया।

लोकायुक्त ने की अवैध गिरफ्तारी
सौरभ के वकील राकेश पाराशर का कहना है,  लोकायुक्त ने अवैध गिरफ्तारी की। इसके खिलाफ कोर्ट में आवेदन दिया है। आवेदन में ये भी लिखा गया कि लोकायुक्त पुलिस को निर्देशित किया जाए कि जल्द से जल्द सौरभ शर्मा को न्यायालय में पेश किया जाए। नए आवेदन में सौरभ की सुरक्षा की भी मांग की गई है। वकील पाराशर का कहना है कि सौरभ की जान को खतरा है। किसी का नाम उसके मुंह में डालकर उगलवाएंगे। पूछताछ की रिकॉर्डिंग होनी चाहिए। हमें अदालत पर भरोसा है, लेकिन पुलिस पर नहीं। वकील पाराशर ने आगे बताया, सौरभ को लोकायुक्त पुलिस ने कोर्ट के गेट के बाहर से पकड़ लिया गया। कोर्ट ने आज की तारीख दी थी। और सौरभ आ ही गया था। लेकिन वाहवाही लूटने के लिए उसको पकड़ लिया गया। इस मामले में लोकायुक्त डीजी जयदीप प्रसाद ने बताया कि सौरभ की पत्नी से पूछताछ पर लोकायुक्त डीजी बोले जांच में जिसका भी नाम आएगा, उन सबसे पूछताछ होगी। सौरभ फरारी के दौरान कहां-कहां रहा? यह पूछताछ में पता चलेगा। डीजी ने कहा, सौरभ शर्मा को जांच एजेंसियों से कोई जान का खतरा नहीं होगा। हालांकि, पूछताछ के दौरान की वीडियोग्राफी के सवाल पर डीजी लोकायुक्त ने इनकार कर दिया।

ईडी, लोकायुक्त और आयकर विभाग ने छापे मारे थे
भोपाल में आरटीओ के पूर्व कॉन्स्टेबल सौरभ शर्मा के यहां 9 दिन में तीन एजेंसियां ईडी, लोकायुक्त और आयकर विभाग ने छापे मारे थे। कार्रवाई के दौरान उसके पास 93 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी मिली। इनमें कार में मिला 52 किलो सोना और 11 करोड़ कैश भी शामिल है। प्रवर्तन निदेशालय ने 27 दिसंबर को सौरभ शर्मा और उसके सहयोगी चेतन सिंह गौर, शरद जायसवाल, रोहित तिवारी के ठिकानों पर छापे मारे थे। सौरभ के परिजन और दोस्तों के खातों में 4 करोड़ रुपए का बैंक बैलेंस पाया। इसके अलावा 23 करोड़ की संपत्ति भी जांच के दायरे में ईडी ने ली थी। भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर में की गई जांच में 6 करोड़ रुपए की एफडी की जानकारी भी ईडी के हाथ लगी है। फर्मों और कंपनियों के जरिए किए गए निवेश का खुलासा हुआ है।

मिली थी करीब 100 करोड़ की संपत्ति
लोकायुक्त की टीम ने 19 दिसंबर को आरटीओ के पूर्व कॉन्स्टेबल सौरभ शर्मा के भोपाल की अरेरा कॉलोनी स्थित घर और ऑफिस पर छापा मारा था। टीम को इन ठिकानों से 2.95 करोड़ रुपए कैश, करीब 50 लाख रुपए के सोने-चांदी के जेवरात और 234 किलो चांदी सहित अन्य प्रॉपर्टी के दस्तावेज मिले थे। इसी दिन आधी रात के बाद भोपाल के ही मेंडोरी इलाके में जंगल में लावारिस खड़ी कार से 52 किलो सोना और 11 करोड़ रुपए कैश मिले थे। ये कार सौरभ शर्मा के सहयोगी चेतन सिंह गौर के नाम है। चेतन ने जांच एजेंसी को बताया था कि गोल्ड और कैश सौरभ शर्मा का ही है। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सौरभ और उसके परिवार व परिचित के यहां छापा मारा था। इस दौरान जांच एजेंसी को कैश समेत 23 करोड़ की संपत्ति मिली थी। लोकायुक्त के छापे के बाद से ही सौरभ फरार था। छापे के समय उसके दुबई में होने की जानकारी सामने आई थी। जांच एजेंसियां लगातार उसकी तलाश में दबिश दे रही थी।

 परिवहन विभाग में मिली नियुक्ति भी विवादों में
परिवहन विभाग में पदस्थ सीनियर अफसरों बताते हैं कि सौरभ के पिता स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ थे। साल 2016 में उनकी अचानक मृत्यु के बाद उनकी जगह अनुकंपा नियुक्ति के लिए सौरभ की तरफ से आवेदन दिया गया। स्वास्थ्य विभाग ने स्पेशल नोटशीट लिखी कि उनके यहां कोई पद खाली नहीं है। अधिकारियों के मुताबिक ये इसलिए किया गया ताकि सौरभ शर्मा को मनचाहे विभाग में अनुकंपा नियुक्ति मिल सके। अफसरों के मुताबिक आमतौर पर परिवहन विभाग में अनुकंपा नियुक्ति इतनी आसानी से नहीं होती। इसके लिए ऊंची पहुंच यानी राजनीतिक कॉन्टैक्ट होना बेहद जरूरी होता है। परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 2016 की तत्कालीन सरकार में भी सौरभ के हाई लेवल पर संबंध थे। यही वजह थी कि उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया बहुत तेजी से पूरी हुई।
 

पहले ऑफिस में पदस्थ, उसके बाद चेक पोस्ट का काम
अफसरों के मुताबिक अक्टूबर 2016 में सौरभ की भर्ती के बाद उसकी पहली पोस्टिंग ग्वालियर परिवहन विभाग में हुई। मगर, जल्द ही उसे चेक पोस्ट पर नियुक्त कर दिया गया। साल 2019 तक वह चेक पोस्ट पर रहा इसके बाद वह फ्लाइंग स्क्वॉड में आ गया। इस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मार्च 2020 में जब मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का तख्तापलट हुआ और शिवराज सरकार की वापसी हुई, तो मंत्रालय में भी फेरबदल हुए। सीनियर अधिकारी कहते हैं कि जुलाई 2020 में चेकपोस्ट पर नई व्यवस्था बनी। अधिकारियों को भरोसे में न लेते हुए मालवा निमाड़ के चेक पोस्ट का काम सौरभ के सुपुर्द कर दिया गया। उस समय के अफसर इस फैसले से नाराज थे। अधिकारियों के मुताबिक 1 जुलाई 2024 से पहले( इस तारीख को सरकार ने चेकपोस्ट बंद करने का फैसला लिया है) एमपी में कुल 47 परिवहन चेकपोस्ट थे, इनमें से 23 चेकपोस्ट सौरभ संभालता था। उसका दखल सीधे हाई लेवल पर था। उसने चेक पोस्ट के प्रभारी अधिकारियों को दरकिनार कर मनमाफिक व्यवस्था बनाई।

News Desk

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